शिक्षा किसी भी समाज का आधार-स्तंभ होती है। इसलिए समाज के भावी कर्णधारों को शिक्षा से इस प्रकार जोड़ना चाहिए कि वह उन्हें जीवन से जुड़ी हुई लगे और भविष्य में स्वयं उनके व समाज के लिए उपयोगी हो। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा में विद्यालयी शैक्षिक एवं पाठ्य सहगामी गतिविधियों को व्यावहारिक जीवन से जोड़ने का आह्वान किया गया है। विद्यालय और व्यावहारिक जीवन जितना निकट होंगे, उतना ही शैक्षिक अधिगम का मार्ग सुगम होगा। शिक्षा में सिद्धांत व व्यवहार का संतुलन होना चाहिए। विषय चाहे कोई भी हो, उसके शिक्षण में जीवन को स्पर्श करने के जितने प्रयास किए जाएँगे, वह विषय उतना ही रुचिकर होता जाएगा। विषय में निहित प्रकरणों को सहजता, सरलता व बोधगम्यता से परिपूर्ण करने के लिए आवश्यक है कि उन्हें व्यावहारिकता के रंगों में रँग दिया जाए। इस संदर्भ में यह देखना आवश्यक है कि युग की उल्लिखित माँग के अनुरूप श्रेष्ठ पुस्तक किसे कहा जाए। हमारे विचार में एक श्रेष्ठ पुस्तक वही हो सकती है, जिसमें अद्यनता हो, जो तकनीकी युग के इस परिवर्तनशील जगत के अनुसार जिसका स्वरूप नित्य निखरा हुआ दिखाई दे, जो सहज रूप में ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार का माध्यम बने, जिसका रूप सामाजिक संरचना के अनुकूल हो, जिसमें शिक्षण के प्रति जहाँ नवीन दृष्टि का आह्वान हो, वहीं विद्यार्थियों के सहज बौद्धिक विकास का संकल्प दिखाई दे तथा जिसमें रचनात्मक बिंदुओं व मूल्याधारित शैक्षिक आवश्यकताओं के समावेश के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट हो।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एन- सी- ई- आर- टी-) द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम व उल्लिखित विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए हमने अपनी इस पुस्तक में सरस, सरल, सुबोध भाषा में व्यावहारिक जीवन व जगत से उदाहरण लेकर सभी प्रकरणों को स्पष्टता देने का प्रयास किया है। पुस्तक में अभ्यास-कार्य ‘दर्पण’ में अधिकाधिक लघु व लघूत्तरीय प्रश्नों का समावेश किया गया है तथा अंत में रचनात्मक गतिविधियाँ भी दी गई हैं। समाचारपत्र व ई-पेपर आदि से समाचार, आलेख, रिपोर्ट, -फीचर आदि लेकर बिल्कुल व्यावहारिक धरातल पर उन्हें स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। अभ्यास कार्य में विषयगत गहनता है यानी प्रश्नों में पाठ से जुड़े सभी बिंदुओं को समाहित किया गया है। पुस्तक निर्माण के समय पिछले वर्षों में परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों का ध्यान रखते हुए उनसे संबंधित सामग्री भी पाठों में निहित है।
इन विशेषताओं से परिपूर्ण एक श्रेष्ठ पुस्तक का निर्माण करने के लिए हम संकल्पित थे। इसके निर्माण में हमें अनेक शिक्षाविदों और शिक्षक साथियों का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ है। इसके लिए हम प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वाले सभी महानुभावों के प्रति हृदय से आभारी रहेंगे।
विश्वास है कि यह पुस्तक विद्यार्थियों को प्रभावित करेगी तथा उनके लिए बहुत उपयोगी व ज्ञानवर्धक सिद्ध होगी। विद्वज्जनों से आग्रह है कि कृपया पुस्तक के संदर्भ में वे अपने विचार अवश्य प्रकट करें, ताकि अगले संस्करण में पुस्तक को सुझावों के अनुरूप संशोधित किया जा सके।


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Naval Apathit Bodh & Vyavaharik Rachnatmak Lekhan for Classes XI & XII (For Hindi Elective)

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